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बैतूल में स्थित असीरगढ का किला एवं बुरहानपुर जिले के असीरगढ किले में एक ही समानता

बैतूल जिले में स्थित असीरगढ के किले एवं बुरहानपुर जिले के असीरगढ किले में एक ही समानता है। दोनो नाम राशी है तथा तप्तीचंल में स्थित है। मुगल शासन काल में चर्चित रहे बुरहानपुर के असीरगढ किले में मुगलो का तथा बैतूल जिले के असीर गढ किले में गोंडो का राज्य था।
बैतूल जिले के तहत आने वाला खेरला। गोंड राजाओं के गढ़ इस किले के बारे में कहा जाता है कि यहां इतना खजाना है यानी सोना है कि यदि उसे खोज लिया जाए, तो इस किले से मीलों दूर तक सोने की सड़क बनाई जा सकती है। ईसवी शताब्दी 997 में खेरला का राजा एल (इल)था। इस राजवंश के आखिरी शासक जैतपाल के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद सनकी था। उस समय इस किले में लगभग 35 परगने शामिल थे। मराठी के ग्रंथ विवेक सिंधू में के मुताबिक, सतपुड़ा के पठार पर स्थित बैतूल को बदनूर के नाम से भी जाना जाता है। ईसवी शताब्दी 997 में खेड़ला के राजा इल की राजधानी एलिजपुर भी थी। यह कहा जाता है कि जैतपाल के पास पारस पत्थर था।
राजा इल के खेरला में आने वाले 35 परगनो में शामिल रहे असीरगढ किला का निर्माण कार्य गोंड राजाओं के द्वारा किया गया था|
यूं तो हमारे देश के कई राजा-महाराजाओं के किले उनके द्वारा जमा किये गये प्रचुर खजानों से भरे पड़े हैं . विश्व के जाने- माने इतिहासकार टोलमी के अनुसार वर्तमान काल का बैतूल बीते कल के अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु था। इस बैतूल में ईसा पश्चात 13० से 161 कोण्डाली नामक राजा का कब्जा था जो कि अपने आपको गौंड़ जाति का मानता था। इस अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु कहा जाने वाले बैतूल जिले पर यँू तो गोंड राजा- महाराजाओं की कई पीढिय़ो ने कई सदियों तक राज किया। मुगलों के आक्रमण के पश्चात ही 35 परगनों वाले खेरला (खेड़ला) राजवंश के किले को मुगलो ने अपने अनिश्चीत हमलो के बाद हुए समझौते के तहत उसका नाम बदल कर उसे नया नाम मेहमुदाबाद कर दिया .
बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग दस कि.मी. की दूर पर स्थित ऐतिहासिक महत्व की धरोहर कहलाने वाला खेड़ला किला आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद है। खण्डहर में तब्दील हो चुके इस किले की दीवारों के बेजान पत्थर आज भी अपने साथ हुए बर्बरता पूर्वक व्यवहार को चीख-चीखकर गुजरे इतिहास की गाथा को ताजा कर यहाँ पर आने- जाने वालो को एक पल के लिए स्तब्ध कर देते है। इतिहास के पन्नों पर अपना स्वर्णिम नाम अंकित करा चुके इस किले के बारे में अनेक किस्से कहानियाँ सुनने को मिलती है। आज भी यही किस्से कहानियाँ इन किलो के हिस्सो में खुदाई का कारण बनते चले जा रहे है। बैतूल जिला मुख्यालय से मात्र दस किलो मीटर की दूरी पर स्थित रावणवाड़ी ऊर्फ खेडला ग्राम के पास स्थित खेडला का किला की कई बार खुदाई हो चुकी है। एक किवदंती के अनुसार किले के सामने 22 हेक्टर की भूमि पर बना बैतूल जिले का सबसे बड़ा तालाब जिसमें एक सोने का सूर्य मंदिर धंसा हुआ है। इस मंदिर के लिए कई बार खुदाई हो चुकी लेकिन बीच तालाब में मंदिर के धंसे होने के कारण उसे चारो ओर से हजारो टन मिट्टी के मलबे को आज तक कोई भी पूर्ण रूप से निकाल बाहर कर पाया है

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